’Pushti’ means: grace. An overwhelming grace of Krishna through which Pushti-beings receive sentiment of devotion and subsequently become capable to perform devotion of Shri Krishna without keeping any worldly temptations or desire. Only through the path of devotion one can obtain the Supreme Brahma Shri Krishna; not through the paths of action, knowledge or Upasana. So, from the viewpoint of fruit, “the devotional path of Pushti’’ is the best of all paths.
Thursday, May 10, 2012
|| तीनों योगों का तुलनात्मक अध्ययन ||
क्रम संख्या ज्ञानयोग | कर्मयोग | भक्तियोग |
[ १ ] आध्यात्मिक साधना | भौतिक साधना | आस्तिक साधना | [ २ ] जानने की शक्ति | करने की शक्ति | मानने की शक्ति | [ ३ ] विवेक की मुख्यता | क्रिया की मुख्यता | भाव [ श्रधा ] की मुख्यता | [ ४ ] स्वरूप को जानना | सेवा करना | भगवान को मानना | [ ५ ] स्वरूपपरायणता | कर्तव्यपरायणता | भगवतपरायणता | [ ६ ] स्व - आश्रय | धर्म [ कर्तव्य ] का आश्रय | भगवद - आश्रय | [ ७ ] अहंता का त्याग | कामना का त्याग | ममता का त्याग | [ ८ ] अहंता को मिटाना | अहंता को शुद्ध करना | अहंता को बदलना | [९ ] अपने लिए उपयोगी | संसार के लिए उपयोगी | भगवान के लिए उपयोगी | [१० ] 'अक्षर ' की प्रधानता | ' क्षर ' की प्रधानता | ' पुरुषोत्तम ' की प्रधानता | [११ ] ज्ञातज्ञातव्यता | कृतकृत्यता | प्राप्तप्राप्तव्यता | [१२ ] अखंड रस | शांत रस | अनंत रस | [१३ ] तात्विक संबंध | नित्य संबंध | आत्मीय संबंध | [१४ ] परमात्मा से एकता | परमात्मा से समीपता | परमात्मा से अभिन्नता | [१५ ] बोध की प्राप्ति | योग की प्राप्ति | प्रेम की प्राप्ति | [ १६ ] स्वाधीनता | उदारता | आत्मीयता | [१७ ] स्वरूप में स्थिति | जड का आकर्षण मिटता है | भगवान में आकर्षण होता है | [१८ ] कर्तृत्व का त्याग | भोकत्र्तव का त्याग | ममत्व का त्याग | [१९ ] आत्मसुख | संसार का सुख | भगवान का सुख | [२० ] कुछ भी न करना | संसार के लिए करना |भगवान के लिए करना | [२१ ] प्रकृति के अर्पण करना | संसार के अर्पण करना | भगवान के अर्पण करना | [२२ ] विरक्ति | अनासक्ति | अनुरक्ति | [२३ ] देहाभिमान बाधक है | कामना बाधक है | भगवद - विमुखता बाधक है | [२४ ] कर्म भस्म हो जाते हैं | कर्म अकर्म हो जाते हैं | कर्म दिव्य हो जाते हैं |
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